Thursday, July 7, 2011

कलमकार नहीं.

यूँ ही लिख लेता हूँ कलमकार नहीं.
दिल का मारा हूँ फनकार नहीं.
दर्द सीने मैं दफ़न रखता हूँ,
हँस जो लेता तो गुनाहगार नहीं.
मेरे अहसास की ना कीमत करना,
दिल का मालिक हूँ, बाजार नहीं.
तेरी यादों के मेरी आँखों मैं जुगनू है,
नींद से बोल दियातेरा तलबगार नहीं.
है मयस्सर किसे अहसास-ए-वफ़ा यारो,
वक्त भी आजकल शायद वफादार नहीं.
मैंने जो चाहा किया, कोई अफ़सोस नहीं,
मैं शहंशाह हूँ, सिपहसलार नहीं.
सबकी आँखों मैं बेबसी दिखती,
किसको गम अपना कहूं, मददगार नहीं.
आजकल हर कोई दीवाना लगे,
लैब पे अलफ़ाज़ है पर प्यार नहीं.
मेरे घर से उजाले डरते 'अनुज',
उनको मालूम यहाँ त्यौहार नहीं।

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