Monday, August 22, 2011

अब जागो ऐ सोने वालो!
ताल ठोंक कर कदम मिला लो॥
बहुत हो चुकी नींद तुम्हारी,
रातें ढली सभी अंधियारी;
अब जागो ऐ वीर सपूतो,
देश तके उम्मीद तुम्हारी;
किस मादकता में डूबे हो,
सोचो,समझो, होश संभालो।।अब जागो ऐ सोने वालो!
अब सोये तो सुबह न होगी,
जगने की फिर वजह न होगी;
वतन सुलगता रहा अगर तो,
अमन-चैन की जगह न होगी;
मुश्किल में हालात देश के ,
आओ मिल सब इसे बचा लो॥ अब जागो ऐ सोने वालो!
क्या हिन्दू? क्या मुस्लिम भाई ?
क्या सिख या कोई ईसाई?
साथ चले जब एक राह पर,
सबने मिलकर मंजिल पायी;
किस उलझन में दूर खड़े हो,
राग-द्वेष सब आज मिटा लो॥ अब जागो ऐ सोने वालो!
एक वृद्ध जब चला अकेला,
जन-समूह का आया रेला;
धीरे-धीरे पंक्ति बनी इक,
आज पंक्ति से बना है मेला;
आज दिखा दो ताकत अपनी,
एक तमाशा तुम कर डालो॥ अब जागो ऐ सोने वालो!
व्यर्थ नहीं होती कुर्वानी,
रोज नहीं आती है जवानी;
अगर राष्ट्र-हित खून न खौला,
खून नहीं, वो होता पानी;
कभी देश की खातिर मिलती,
मौत अगर तो गले लगा लो॥ अब जागो ऐ सोने वालो!
मिल कर भ्रष्टाचार मिटा दो,
कुटिल नीतियां यार मिटा दो;
गर विरोध में आये सामने,
तो सब मिल सरकार मिटा दो;
अखंड देश का गौरव जिसमें,
ऐसा सुन्दर देश सजा लो॥ अब जागो ऐ सोने वालो!

 डॉ० अनुज भदौरिया ' जालौनवी '
१२७०, नया रामनगर, उरई ( जालौन ) उ० प्र०
२८५००१
दूरभाष- ०५१६२-२५५४५१
चल दूरभाष- ०९४१५१६९९३६



Sunday, August 14, 2011

Saturday, August 13, 2011

कोई जब दिलनशीन लगता है।


कोई जब दिलनशीन लगता है।
सारा आलम हसीन लगता है॥

उसकी सांसों से मैं महकता हूँ,
जिस्म ताज़ातरीन लगता है॥

उसकी हर-एक अदा का कायल हूँ,
मुझको वो नाजनीन लगता है॥

उसका अहसास जब भी छूता है,
ज़िन्दगी पर यकीन लगता है॥


डॉ० अनुज भदौरिया

Monday, August 8, 2011

Sunday, August 7, 2011

Wednesday, August 3, 2011

मेरी कश्ती

क्या-क्या सितम

क्या-क्या सितम ज़माने के हँसकर गुजरता।
किस्मत की इक लकीर को लिखता-मिटारता॥
ख्वाबों के घरोंदों की अजाब खासियत है ये ,
हर रोज़ उन्हें नीद से जगकर निखरता॥
यादों की लकीरों से कोई अक्स बन गया,
उसको कभी रोकर कभी हँसकर संवारता।।
हर दर्द मुनासिब है मुझे प्यार के लिए,
सीने में हर-एक दर्द को छिपाकर उतारता॥
उल्फत का रंग खून-ए-जिगर से मिला 'अनुज',
अब ज़िन्दगी की राहें रह-रहकर निहारता॥

मैं हवाओं का रुख बदल देता।

मैं हवाओं का रुख बदल देता।
वो अगर साथ मेरे चल देता॥
मेरी इतनी सी खता उसको हमराह चुना,
हाथ को थमने का न कोई शगल देता।
हुस्न पर नाज़ उसे दिल पे मुझे नाज़ रहा,
या खुदा दिल उसे मुझको तू शकल देता।
मेरे अल्फाज़ मेरे सारे तराने होते,
वो अगर पास मैं होता तो मैं ग़ज़ल देता।
उसकी हर याद मेरे दिल को तसल्ली देती,
जुस्तुजू थी कोई दिल मैं मेरे हलचल देता।