Saturday, September 15, 2012

भावों की अभिव्यक्ति किसी की भाषा बन जाती है.
संवेदी आशक्ति किसी  की भाषा बन जाती है.
मूक-बधिर की भाषा क्या? अभिव्यक्ति हुआ करती है.
उनके सम्प्रेषण में अहसासों की शक्ति हुआ करती है.
सबकी अपनी भाषा होती, पशुओं की, नभचर की.
सबकी अपनी शैली होती, प्रश्न और उत्तर की.
सदा प्रेम की भाषा भी तो शब्द-रहित होती है.
अपने मन की बातें भी तो बिन बोले कहती है.
अतः मात्र भाषा है दूजा रूप एक अभिव्यक्ति का.
यही एक माध्यम होता है सबमें जीव-प्रवत्ति का.